Pranab Mukherjee biography in Hindi: प्रणब मुखर्जी की जीवनी, उनके जन्म से लेकर राजनीतिक करियर और फिर राष्ट्रपति बनने तक की कहानी
प्रणब मुखर्जी: जन्म- 11 दिसंबर 1935, बीरभूम (पश्चिम बंगाल)
Pranab Mukherjee: प्रणब मुखर्जी भारत के 13वें राष्ट्रपति रहे और साल 2012 से 2017 से इस पद पर बने रहे। अपने करीब 60 साल के राजनीतिक करियर में उन्होंने कई अलग-अलग मौकों पर देश को अपनी सेवाएं दी। राष्ट्रपति से पहले वे भारत सरकार में अनेक अहम मंत्रालयों में रहे। यूपीए गठबंधन सरकार में केंद्रीय वित्त मंत्री भी रहे। राष्ट्रपति बनने से पहले वे कांग्रेस के सबसे कद्दावर चेहरों में भी गिने जाते रहे। हालांकि, कांग्रेस के साथ इसी सफर के दौरान उन्हें कभी इस पार्टी से अलग भी होना पड़ा।
प्रणब मुखर्जी का प्रारंभिक जीवन (Pranab Mukherjee Birth and Early Life)
प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर, 1935 को ब्रिटिश राज वाले इंडिया में बंगाव प्रेसिडेंसी के मिरती नाम के स्थान पर एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। ये आज बीरभूम जिले में आता है। पिता कामदा किंकर मुखर्जी भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रीय रहे और सन 1952 से 1964 तक कांग्रेस पार्टी से पश्चिम बंगाल विधान परिषद् के सदस्य भी रहे।
प्रणब की मां का नाम राजलक्ष्मी है। प्रणब मुखर्जी ने अपनी स्कूली शिक्षा बीरभूम के सूरी विद्यासागर कॉलेज में की। बाद में उन्होंने राजनीति शास्त्र और इतिहास विषय में मास्टर्स (M.A) किया। ये उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से किया और फिर इसी विश्वविद्यालय से उन्होंने एल.एल.बी. की डिग्री भी हासिल की।
प्रणब मुखर्जी की शादी और व्यक्तिगत जीवन (Pranab Mukherjee: Personal Life)
प्रणब मुखर्जी की शादी 13 जुलाई 1957 को सुर्वा मुखर्जी से हुई। इनके इंद्रजीत और अभिजीत मुखर्जी दो बेटे हुए। साथ ही एक बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी भी है। प्रणब मुखर्जी की पत्नी सुर्वा बांग्लादेश के नारैल से माइग्रेट होकर कोलकाता आई थीं और उस समय उनकी उम्र केवल 10 साल थी। इनका निधन 17 अगस्त, 2015 को 74 साल की उम्र में कार्डियक अरेस्ट से हुआ था। प्रबण मुखर्जी के बड़े बेटे अभिजीत पश्चिम बंगाल के जांगीपुर से कांग्रेस सासंद हैं। वहीं, शर्मिष्ठा कांग्रेस से जुड़ी नेता के साथ-साथ एक कत्थक डांसर भी हैं।
प्रणब मुखर्जी का करियर (Pranab Mukherjee and his Career)
प्रणब मुखर्जी राजनीति से पहले कोलकाता (कब कलकत्ता) के उप महालेखाकार के कार्यालय में एक उच्च-स्तरीय क्लर्क के रूप में कार्य करते थे। साल 1963 में उन्होंने राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर (Assistant Professor) के रूप में कोलकाता के विद्यानगर कॉलेज में प्रवेश लिया। उन्होंने एक पत्रकार के रूप में 'देशर डाक' (मातृभूमि की पुकार) के लिए भी काम किया।
वर्ष 1969 में मुखर्जी ने राजनीति में प्रवेश किया और निर्दलीय उम्मीदवार वी. के कृष्णा मेनन के चुनाव अभियान को प्रबंधित किया। इसी दौरान भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें कांग्रेस में आने शामिल होने का प्रस्ताव दिया, जिसे वे अस्वीकार नहीं कर सके।
साल 1969 में इंदिरा गांधी ने उन्हें संसद के ऊपरी सदन (राज्यसभा) का सदस्य बनाने में मदद की। इसके बाद 1975, 1981, 1993 और 1999 में उन्हें फिर से राज्यसभा के लिए चुना गया।
प्रणब मुखर्जी 1973 तक इंदिरा गांधी के सबसे भरोसेमंद शख्स और उनके मंत्रिमंडल में मंत्री बन चुके थे। साल 1982 से 1984 तक, मुखर्जी इंदिरा गांधी के कार्यकाल में वित्त मंत्री रहे और उन्होंने ही मनमोहन सिंह को RBI का गवर्नर भी तब नियुक्त किया। ये वो दौर था जब प्रणब मुखर्जी का कद बहुत बढ़ चुका था। कई मौकों पर उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अनुपस्थिति में कैबिनेट बैठकों की अध्यक्षता भी की।
प्रणब मुखर्जी जब कांग्रेस से हो गए दूर
एक समय कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेताओं में गिने जाने वाले प्रणब मुखर्जी के जीवन में बड़ा मोड़ 1984 में इंदिरा गांधी की हुई हत्या के बाद आया। कई लोग अगले प्रधानमंत्री के तौर पर यहां प्रणब मुखर्जी को देख रहे थे। ऐसा कहा जाता है प्रणब भी इस दिशा में सोच रहे थे। हालांकि, हुआ कुछ और।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कमान राजीव गांधी के हाथ में आ गई। राजीव और प्रणब मुखर्जी के बीच रिश्ते बदलते चले गए। कांग्रेस में लगातार उनकी उपेक्षा होने लगी और उन्हें केंद्र की राजनीति से हटाकर पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी भेज दिया गया। बाद में मुखर्जी ने खुद कांग्रेस से अलग होकर पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (RSC) का गठन किया।
हालांकि, बाद में राजीव गांधी से रिश्ते ठीक होने के बाद उनकी पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया और एक बार फिर वे कांग्रेस में सक्रियता से काम करने लगे।
1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद पीवी नरसिम्हा राव ने मुखर्जी को भारतीय योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया। वहीं, 1995-1996 तक, मुखर्जी ने नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री के रूप में भी कार्य किया।
प्रणब मुखर्जी सोनिया गांधी को राजनीति में लाने में भी अहम रोल
ऐसा माना जाता है कि प्रणब मुखर्जी के कारण राजनीति में सोनिया गांधी का प्रवेश सफल रहा। 1998-1999 में, सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद, मुखर्जी को AICC के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। 2000 से 2010 में अपने इस्तीफे तक प्रणब मुखर्जी ने पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
2004 में वह लोक सभा में सदन के नेता बने। मनमोहन सिंह के कार्यकाल में मुखर्जी ने विभिन्न पदों जैसे रक्षा, वित्त, विदेश मंत्री और अन्य पदों पर किया।
प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव से पहले परंपरा के तौर पर सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और कांग्रेस के साथ अपना संबंध भी समाप्त कर लिया। 25 जुलाई 2012 को वे भारत के राष्ट्रपति बने। 2017 में, उन्होंने फिर से चुनाव लड़ने के लिए दिलचस्पी नहीं दिखाई। उम्र और स्वास्थ्य संबंधित जटिलताओं का हवाला देते हुए राजनीति से सेवानिवृत्त हो गए। उनका बतौर राष्ट्रपति कार्यकाल 25 जुलाई, 2017 को समाप्त हो गया।
प्रबण मुखर्जी को 2019 में भारत रत्न से नवाजा गया
ये भी दिलचस्प है कि प्रबण मुखर्जी को 2019 में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भारत रत्न से नवाजा गया। ये भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। इससे पहले उन्हें 2008 में पद्म विभूषण से भी नवाजा जा चुका था।
इसके अलावा उन्हें दुनिया के दूसरे देशों ने भी सम्मान दिया। बांग्लादेश ने उन्हें मार्च-2013 में बांग्लादेश मुक्तिजुद्धो सम्मानो (Bangladesh Liberation War Honour) से नवाजा था। वहीं, जून 2016 में आइवरी कोस्ट ने अपने उच्चतम पुरस्कार 'ग्रैंड क्रॉस ऑफ नेशनल ऑर्डर ऑफ द आइवरी कोस्ट' से नवाजा।
(सभी तस्वीरें प्रणब मुखर्जी के ट्विटर हैंडल से ली गई हैं।)





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