India China 1962 War Story: चीन ने 1962 में भारत पर हमला क्यों किया और फिर खुद क्यों हटा था पीछे, दिलचस्प है ये कहानी

India China 1962 War story in Hindi: 'हिंदी-चीन भाई-भाई'...कहने को ये नारा तो आज भी भारत के लोगों को याद है लेकिन चीन की ओर से जितने धोखे मिले हैं, वो भी भूलने लायक तो नहीं ही है। 1960 का दशक हो या फिर बीते कुछ साल, चीन से भारत की तनातनी कई मौकों पर रही है और मुख्य वजह सीमा विवाद ही अब तक उभर कर सामने आया है। हालांकि, समीकरण उतने सुलझे हुए भी नहीं हैं। इसलिए जरूरी है कि भारत-चीन युद्ध को विस्तार (India China 1962 war details) से समझा जाए। भारत और चीन के बीच 1962 में जब लड़ाई हुई तो हिंदुस्तान को अंदाजा भी नहीं था कि ऐसा कुछ हो सकता है। ये कुछ ऐसा था जैसे किसी ने नींद से जगा दिया हो। सबकुछ इतनी तेजी से हुआ कि भारत को संभलने का मौका भी तब ठीक से नहीं मिला था।

हालात अब हालांकि जरूर अलग हैं। चीन के भारत पर उस हमले ने भारत को बहुत कुछ सीखा दिया। भारत अब हर मामले में बेहतर स्थिति में है और तैयार है। चीन को भी ये पता है। इसलिए गलवान घाटी या फिर उससे पहले डोकलाम विवाद के विवाद में चीन को अपने कदम पीछे करने पड़े। हम चूकी भारत-चीन युद्ध की तस्वीरों (India china 1962 war pictures) को याद कर रहे हैं तो ऐसे में दो चीजों पर चर्चा जरूरी है। 

पहला ये कि चीन ने भारत पर 1962 में हमला क्यों किया था और अगर किया और युद्ध के नतीजे भी उसके पक्ष में जा रहे थे तो फिर चीन ने ही युद्धविराम की घोषण क्यों की और पीछे क्यों चला गया। सबसे पहले बात शुरू करते हैं इस प्वाइंट से कि आखिर चीन ने भारत पर हमला ही क्यों किया?

India China War: चीन ने 1962 में क्यों भारत पर हमला किया?

ये दिलचस्प है कि अब तक ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि चीन ने आखिर क्यों भारत पर तब हमला किया था। चीन से सरकारी की मर्जी के बगैर कोई बात आने से रही और इसलिए कई कयास और कुछ एक किताबों और रिपोर्ट के जरिए अटकले ही लगाई जा सकती है। इसमें एक बड़ा कारण तो दलाई लामा को भारत की ओर से शरण देना माना जाता है। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में इसके कुछ जिक्र भी हैं।

साल 1950 में चीन ने तिब्बत में दखल देना शुरू किया। बढ़ते कत्लेआम और तिब्बत में बिगड़ती हालत देख दलाई लामा को उनके सहयोगियों और उन्हें मानने वालों ने वहां से भाग जाने को कहा। काफी सोच-विचार के बाद दलाई लामा ने भारत में शरण लेने का मन बनाया। दलाई लामा ने ये सूचना भारत भिजवाई और भारत ने भी इस पर सममति जता दी। भारत के कदम को देखकर चीन नाराज हुआ। ये 1959 का साल था। हालांकि इससे पहले से चीन से भारत के रिश्ते खराब होने लगे थे।

चीन की सरकारी पत्रिका में छपे विवादास्पद नक्शे

दलाई लामा के भारत आने से पहले ही चीन की कारस्तानी नजर आने लगी थी। साल 1958 की बात है। चीन की एक सरकारी पत्रिका ‘चाइना पिक्टोरिअल’ ने कुछ विवादास्पद नक़्शे छापे। इसमें नेफा (नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी, आज का अरुणाचल प्रदेश) और लद्दाख के कई इलाके को चीन का हिस्सा दिखाया गया। यह सूचना मिलने पर दिसंबर, 1959 में भारत के तब के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने चीनी पीएम चाऊ इन लाइ को पत्र लिखकर विरोध जताया और मैकमोहन लाइन की बात याद दिलाई।

चीन ने हालांकि पत्र के जवाब में मैकमोहन लाइन की बात से इनकार कर दिया और कहा कि वो ब्रिटिश हुकूमत की दी हुई सीमा है और चीन इसे नहीं मानता है। चीन की ओर से कहा गया कि सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच के विवाद को अभी सुलझाया ही नहीं गया है। 

पत्रों का ये सवाल-जवाब चल ही रहा था कि दलाई लामा भारत आ गए और जाहिर है चीन इससे काफी चिढ़ गया। दोनों देशों की सेनाओं के बीच तब तक झड़प की कुछ एक घटनाएं होने लगी थी। इसी बीच माहौल को बेहतर करने के लिए नेहरू ने चीनी पीएम चाऊ एन लाई को भारत आने का न्योता दिया। 1960 की इस यात्रा के बाद भी हालांकि विवाद बना रहा।

भारत के साथ चीन के युद्ध की एक और वजह भी थी!

ऐसा भी कहा जाता है कि चीन के तब के शीर्ष नेता माओत्से तुंग (माओ) के चीन में अपनी स्थिति के भय के चलते 1962 का युद्ध शुरू किया था। चीन के एक शीर्ष रणनीतिकार वांग जिसी का कुछ साल पहले एक बयान सुर्खियों में था जिसमें उन्होंने कहा कि साल 1962 में ग्रेट लीप फॉरवर्ड (जीएलएफ) के बाद माओत्से ने सत्ता पर खो दिया था। वह अब देश के प्रमुख नहीं थे और वह 'दूसरी पंक्ति' में चले गए। 

जीएलएफ आंदोलन चीन को बर्बाद करने वाला साबित हुआ। लाखों लोग हिंसा की भेंट चढ़े। इससे माओत्से की देश की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी आफ चाइना (सीपीसी) के सर्वोच्च नेता के तौर पर स्थिति कमजोर हुई। 

इसलिए वह यह साबित करना चाहते थे कि सेना का नियंत्रण उनके हाथों में है। 

यही संभवत: कारण था कि उन्होंने युद्ध के आदेश दिए। यहां बता दें कि जीएलएफ चीन में एक जनअभियान था। इसकी शुरुआत माओत्से तुंग ने देश को एक कृषि आधारित अर्थव्यस्था से आधुनिक कम्युनिस्ट समाज में बदलने के लिए की। इसमें चीन की विशाल जनसंख्या का इस्तेमाल की बात कही गई और इसे अमलीजामा पहनाने की भी कोशिश हुई।

India China War: चीन मजबूत था फिर क्यों हटा पीछे

ये सब जानते हैं कि चीन इस लड़ाई में भारत पर बहुत भारी पड़ा था। चीनी सैनिक नेफा में बहुत आगे आ गए थे और उनके असम में जाने का खतरा पैदा हो गया था। हालांकि, इसी बीच 22 नवंबर को अचानक चीन ने युद्धविराम की घोषणा कर दी। साथ ही चीन अपने सैनिकों को मैकमोहन लाइन से पीछे लेकर चला गया। लद्दाख क्षेत्र में वह युद्ध से पहले वाली स्थिति में लौट गया। चीन ने ऐसा क्यों किया, ये बड़ा रहस्य है।

इस बारे में एक कयास तो ये लगता है कि ब्रिटेन और अमेरिका के भारत के कुछ हद तक पक्ष में आने से चीन घबरा गया था। अमरीका और ब्रिटेन ने भारत को हथियार भेजना शुरू कर दिया था। दूसरी मदद भी आने लगी थी। इसे संभालना चीन के लिए मुश्किल हो सकता था। 

एक बात ये भी कही जाती है कि सर्दियों के दिन आ रहे थे और ऐसे में वो पूरा इलाका बर्फ से ढक जाता है। ऐसे में चीन अब अपने सैनिकों को भविष्य में कुछ महीनों तक मदद नहीं पहुंचा सकता था। भारत के लिए युद्ध में वापसी का ये सटीक समय होता और फिर चीन की किरकिरी होती। इस वजह से भी संभवत: उसने खुद ही सम्मान के साथ कदम पीछे खींचने में अपनी भलाई समझी।

Comments