'ओम जय जगदीश हरे' की रचना किसने की थी? 150 साल पहले लिखी गई थी ये आरती, जानिए पूरी कहानी


'ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे', हिंदीभाषी हिंदू धर्म के मानने वाले लोग इस आरती से अंजान नहीं होंगे। कहीं न कहीं, किसी न किसी मौके पर ये आरती सबने सुनी और गाई होगी। लेकिन क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है कि इसकी रचना कब हुई। इसे कब लिखा गया और किसने लिखा? शायद कई लोगों को पता भी हो लेकिन तो वहीं, हम सबमें से कई लोगों ने इस बारे में कभी सोचा भी नहीं होगा। आइए, आज 'ओउम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे' आरती की रचना वाले वाले इसी शख्स की कहानी जानते हैं।

श्रद्धाराम फिल्लौरी...जी हां! यही वो शख्स हैं जिन्होंने आज से करीब 150 साल पहले 'ओउम जय जगदीश हरे' आरती की रचना की। चूकी सितंबर का महीना चल रहा है इसलिए भी इनका जिक्र जरूरी है। श्रद्धाराम फिल्लौरी का जन्म 30 सितंबर, 1837 को पंजाब के जालंधर जिले से छोटे से कस्बे फिल्लौर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

Shraddha Ram Phillauri: कथावचन, धर्म प्रचारक, स्वतंत्रता सेनानी और साहित्यकार

श्रद्धाराम फिल्लौरी का जीवन का परिचय ये चार शब्द बखूबी देते हैं। श्रद्धाराम फिल्लौरी के पिता ज्योतिषाचार्य थे लेकिन घर में गरीबी भी थी। यही वजह है कि जीविका के लिए छोटी सी उम्र में उन्हें कथावाचन का काम शुरू करना पड़ा। इस दौरान वे सनातन धर्म के प्रचार में भी जुटे रहे। मात्र सात साल की उम्र में उन्होंने गुरुमुखी भी सीख ली थी। कथा वाचन के लिए महाभारत को चुना। उन्हें महाभारत की कथा सुनाना बहुत अच्छा लगता। वे जहां भी महाभारत के प्रसंगों का खूबसूरत तरीके वर्णन करते, लोगों का जमावड़ा लग जाता।

श्रद्धाराम फिल्लौरी की ख्याति बढ़ने लगी थी। इस दौरान वे रचनाएं भी करने लगे। इसमें पंजाबी और हिंदी रचनाएं शामिल हैं। श्रद्धाराम जब युवा होने लगे थे तो देशभक्ति का जज्बा भी उनके मन में प्रबल होने लगा था। ये दौर 1857 में हुए स्वतंत्रता के पहले संग्राम का भी था। 

श्रद्धाराम अपने कथा मंचों से लोगों के मन में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ चेतना जगाने का भी काम करने लगे। ये साल 1865 की बात है। अंग्रेजी सरकार को जब इसकी भनक लगी तो 28 साल के श्रद्धाराम को शहर से बाहर निकाल दिया गया। शहर-बदर कर दिया गया। हालांकि तब तक श्रद्धाराम फिल्लौरी की प्रसिद्धि काफी हो चली थी। 

Shraddha Ram Phillauri: पादरी की याचिका पर शहर निकाला हुआ खारिज

श्रद्धाराम से एक पादरी बहुत प्रभावित थे। वे उनका काफी सम्मान भी करते थे। उन्हें जब श्रद्धाराम को शहर निकाला दिए जाने की जानकारी मिली तो अंग्रेजी हुकूमत के इस फैसले के खिलाफ याचिका डाल दी। उनकी मांग थी कि श्रद्धाराम का निष्कासन रद्द किया जाए। कुछ प्रयासों के साथ अंग्रेज सरकार उस पादरी की बाद मान गई। निष्कासन वापस लिया गया और एक बार फिर श्रद्धाराम फिल्लौर लौट गए।


फिल्लौर लौटने के बाद श्रद्धाराम अब कथा वाचन और अन्य कार्यों के साथ-साथ समाज कार्य में जुट गए। उस जमाने में ही भ्रूण और पैदा हुई लड़कियों की हत्या के खिलाफ आवाज उठाने लगे और लोगों को समझाने में जुट गए कि ये गलत है। साथ ही उन्होंने बाल विवाह और स्त्री पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ भी आवाज बुलंद की।

Shraddha Ram Phillauri: कैसे हुई 'ओम जय जगदीश हरे' की रचना

इसे लेकर भी एक दिलचस्प कहानी कही जाती है। कहते हैं कि श्रद्धाराम फिल्लौरी एक दिन एक सेठ के पास पहुंच गए। उस सेठ ने अपनी तकलीफ बताई और कहा कि उसके बच्चों का धर्म में मन नहीं लगता। अराधना करने की पंक्तियां भी इतनी मुश्किल है, कुछ इनके लिए लिख दें जिसे वे आसानी से समझ सकें।

श्रद्धाराम वापस लौटे और जो आरती लिखी वो आज घर-घर को याद है। यही आरती थी..'ओम जय जगदीश हरे'। इसके बाद वे जहां भी कथा वाचन या सत्संग के लिए जाते तो इसे गाकर लोगों को सुनाते। लोगों को खूब पसंद आया और धीरे-धीरे ये खूब लोकप्रिय होने लगा। 


आज आलम ये है कि इसे गाये बिना कोई भी पूजा संपन्न नहीं होती है। इस आरती को लेकर एक दिलचस्प बात और है। इस आरती में एक पंक्ति है ‘श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ।’ दरअसल, पूरी आरती में बतौर रचनाकार फिल्लौरी शब्द का श्रद्धाराम फिल्लौरी ने नहीं किया था। 

कहते हैं कि 'श्रद्धा भक्ति बढ़ाओं' में उन्होंने इस चतुराई से 'श्रद्धा' शब्द को डाला था कि इससे 'श्रद्धाराम' नाम का भी संकेत मिल जाए। यह साल यानी कि 2020 में 'ओम जय जगदीश' आरती के 150 साल भी पूरे हो रहे हैं। श्रद्धाराम ने जब इस आरती को लिखा था तब उनकी उम्र केवल 32 साल की थी।

Shraddha Ram Phillauri: हिंदी का पहला उपन्यास 'भाग्यवती' लिखा

श्रद्धाराम ने पंजाबी में 'सिक्खां दे राज दी विथिया' और 'पंजाबी बातचीत' दो गद्यात्मक रचनाएं की। इसी दौरान उन्होंने एक उपन्यास 'भाग्यवती' भी लिखा। कई जानकार ‘भाग्यवती’ को हिंदी के पहले उपन्यास के तौर पर देखते हैं।

इतना कुछ करने के बावजूद फिल्लौरी श्रद्धाराम एक तरह से गुमनामी में खोते चले गए थे। साल 2012 में 175वीं वर्षगांठ के समय उनकी खोई विस्मृति को फिर से संजोने की कोशिश शुरू हुई। फिल्लौरी शहर के बस स्टैंड में इनकी मू्र्ति भी लगी है।

Shraddha Ram Phillauri: केवल 43 साल की उम्र में निधान

हालांकि श्रद्धाराम फिल्लौरी की मौत बहुत कम उम्र में हो गई। उनके उपन्यास छपने के कुछ सालों बाद ही 43 वर्ष की उम्र में 24 जून, 1881 को लाहौर में उनका निधन हो गया।

Shardha Ram Phillauri: जानिए श्रद्धाराम फिल्लौरी के बारे में संक्षेप में

Shardha Ram Phillauri (श्रद्धाराम फिल्लौरी)- जन्म: 30 सितंबर, 1837 (फिल्लौर, पंजाब)

श्रद्धाराम फिल्लौरी- मृत्यु: 24 जून 1881 (लाहौर, पाकिस्तान)

पिता का नाम- जयदयालु

कार्यक्षेत्र- कथावचन, धर्म प्रचारक, स्वतंत्रता सेनानी, साहित्यकार और समाज सेवा

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