कोरोना काल में दिल्ली का दंगल: CM केजरीवाल के फैसले को LG अनिल बैजल ने पलटा, अब सोचो राजनीति किसने की?
बाप अपने बेटे से- तुझे इस बार 80% अंक लाना हैं।
बेटा- नहीं पापा, इस बार मैं 100% नंबर ले आऊंगा।
बाप- क्यों? मजाक कर रहा है बेटा..?
बेटा- पापा मजाक शुरू किसने किया था?
ये चुटकुला या इससे मिलाजुला चुटकुला तो हम सबने सुना होगा। मजाक शुरू किसने किया था? कुछ यही हाल है दिल्ली की राजनीति का भी कोरोना काल में है। किसी ने शुरू किया तो किसी को तो खत्म करना था। दिल्ली में रोज तेजी से बढ़ रहे कोरोना संक्रमण के मामलों के बीच मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को फरमान सुना दिया कि अब दिल्ली के सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में केवल दिल्ली के लोगों का इलाज होगा। दिल्ली से बाहर का कोई व्यक्ति यहां इलाज नहीं करा सकता है। किसी को अगर इलाज कराना भी है तो केंद्र के अंदर आने वाले अस्पतालों में आएं या फिर कुछ बेहद विशेष परिस्थिति में ही दिल्ली के बाहर के लोगों का यहां इलाज किया जाएगा। मसलन कोई जरूरी ऑपरेशन वगैरह।
दिलचस्प ये था कि केजरीवाल ने इस फैसले का आधार जनता से मांगे गए सुझाव को बताया। अपने शासन के शुरुआती दिनों में हर बात पर जनता की दुहाई देने वाले सीएम साहब को बड़े दिनों बाद जनता से सुझाव लेने का विचार सूझा था। खैर, इस फैसले की खूब आलोचना होने लगी। विपक्षी दलों समेत कई दूसरे राज्यों से भी प्रतिक्रियाएं आईं। अभी बहस जारी ही थी कि दिल्ली के उप-राज्यपाल ने सोमवार शाम तक केजरीवाल सरकार के फैसले को पलट दिया और साफ कर दिया कि देश की राजधानी के अस्पतालों में सभी लोगों का इलाज हो सकेगा।
एलजी का जब फैसला आया तो केजरीवाल और दिल्ली सरकार के दूसरे मंत्रियों ने विरोध जरूर जताया है लेकिन अभी उसमें वो तल्खी नजर नहीं आ रही। केजरीवाल भी संभवत: जानते हैं कि उन्होंने बाहर के लोगों के लिए अस्पताल को बंद करने का जो फैसला लिया था वो बहुत प्रासंगिक नहीं है। इसलिए उन्होंने थोड़ा विरोध, थोड़े राजीनामे के साथ ट्वीट किया, 'LG साहब के आदेश ने दिल्ली के लोगों के लिए बहुत बड़ी समस्या और चुनौती पैदा कर दी है। देशभर से आने वाले लोगों के लिए कोरोना महामारी के दौरान इलाज का इंतज़ाम करना बड़ी चुनौती है। शायद भगवान की मर्ज़ी है कि हम पूरे देश के लोगों की सेवा करें। हम सबके इलाज का इंतज़ाम करने की कोशिश करेंगे।'
फिर राजनीति कौन कर रहा है?
दिल्ली में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन कह चुके हैं कि जिस रफ्तार से मामले बढ़ रहे हैं, ऐसे में अगले दो हफ्ते में दिल्ली में कोरोना के केस डबल होकर 56 हजार तक पहुंच जाएंगे। जाहिर है फिर अस्पतालों और बेड पर बयानबाजी वैसे भी शुरू हो जाएगी। दिल्ली सरकार अब तक दावा करती रही है कि बेड के इंतजाम लगातार किए जा रहे हैं। हालांकि, ये भी अब सच है कि जिस रफ्तार से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं वो दिल्ली सरकार की तैयारियों को कहीं पीछे भी छोड़ सकता है।
ऐसे में लगता तो यही है कि सीएम केजरीवाल ने एक ऐसे फैसले की बात की, जिसके बारे में वे जानते थे, कि ये बदल जाएगा। केंद्र को इस मामले में हस्तक्षेप करना था क्योंकि नहीं करते सवालों के घेरे में वे भी थे। ऐसे में एकदम से सामने नहीं आकर लेकिन पर्दे के पीछे से फैसला बदलने पर काम हुआ। इन सबसे अब केजरीवाल को लगता है कि जैसे एक मौका मिल गया है।
दरअसल, ये समझना जरूरी है कि दो-तीन हफ्ते बाद जब दिल्ली में अस्पताल में बेड की कमी, मरीजों की परेशानी और कोरोना के बढ़ते मामलों की बात पर जब आलोचना शुरू होगी तो दिल्ली सरकार के पास कुछ कहने के लिए बातें तो आ ही गई हैं।
वैसे भी हम केजरीवाल की आलोचना करें या उनका समर्थन, एक बात जो सच भी है कि दिल्ली में बढ़ते कोरोना मामले बता रहे हैं कि भविष्य में अस्पतालों में बेड को लेकर बड़ी किल्लत होने जा रही है। भले ही हम दिल्ली वालों और बाहर वालों की बहस में उलझे रहे लेकिन ये तय है कि कोरोना मरीजों के लिए तैयारी और चाहिए। अभी जो है वो पुख्ता नहीं रहने वाला है। दिल्ली सरकार ये देख रही है और उसे अहसास भी है कि भविष्य में आलोचनाओं के केंद्र में वो जरूर होगी। शायद इसलिए केजरीवाल ने कोरोना के इस दौर में आलोचनाओं से बचने के लिए एक टेस्ट कर लिया। रिजल्ट पॉजिटिव होगा या निगेटिव, इसकी रिपोर्ट आना अभी बाकी है।

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