दो दिन पहले एक न्यूज चैनल पर एक बहस देखी...विषय था की “क्या
इंटरनेट कोर्ट से भी बङा है..?” बहस अभिषेक मनु सिंघवी के
कथित सीडी और उसके इंटरनेट पर लिक हो जाने को लेकर थी। यूट्यूब पर चोरी छुपे
विडियो अपलोड कर दिया गया और साइबर जगत में इसे और अभिषेक मनु को लेकर बहस शुरू हो
गई। मुझे भी इसके बारे में लगभग दस दिनों पहले साइबर मीडिया से ही पता चला। पर अब
सोच रहा हूँ की अगर हमारे पास ये माधय्म ना होता तो क्या सचमुच ये बात सामने आती
? ये सही है की कोर्ट ने इस सीडी के कंटेट के प्रसारण पर रोक लगाई
थी पर हमारी जिम्मेदार मीडिया कम से कम ये तो बताती की इस तरह की कोई चीज सामने आई
है। वो सीडी फर्जी या सच है..उस पर तो बहस होती। सीडी के टेस्ट के लिए बिना किसी
लैब को भेजे और आरोपी ड्राईवर से समझौता हो जाने के बाद सीडी को फर्जी कह दिया
गया। कोर्ट से निर्णय भी आ गया की सीडी फर्जी है। पर इसमें जांच कहां हुई। कम से
कम अभिषेक सिंघवी से तो कोई सवाल जवाब होता की इतनी बङी बात होने के बावजूद
उन्होनें अपने ड्राइवर को माफीनामा क्यों दे दिया। इतनी दरियादिली क्यों ?
पर ये सवाल किसी ने नहीं पूछे। कोर्ट ने कंटेट के प्रसारण
पर रोक लगाई थी, बहस पर नहीं। पर फिर भी इस मसले को लेकर चुप्पी थी। वो तो भला हो
साइबर मीडिया का जिसने लगभग मर चुके इस खबर को जिंदा कर दिया। लेकिन अब एक बार फिर
से कुछ लोग साइबर मीडिया पर ही सवाल उठा रहे हैं। सोशल साइट्स को पहले सोशल मीडिया
का तमगा दिया गया और अब उसे सेंसर के दायरे में लाने की बात हो रही है। कमाल है अब
क्या अब हम किसी विषय पर बात भी नहीं करे। गप्पबाजी का जो काम हम चौक-चौराहों,
गली-मुहल्लो में सदियों से करते आ रहे हैं..वहीं काम हम सोशल साइट्स पर क्यों नहीं
कर सकते। सोशल साइट्स की रेडियो, टीवी, औऱ अखबारों से तुलना क्यों की जा रही है ये
बात समझ नहीं आ रही है। फिर तो मोबाइल भी आज के बदलते मीडिया का स्वरूप है..तो
क्या उस पर भी बात करने की गाइडलाइन लाई जाएगी। विडियो अपलोड करना शायद गैरकानूनी
था और उस पर कारवाई की जा सकती है। लेकिन ये अपने आप में एक टेङी खीर है। अब किसने
कहां से और किस नाम से विडियो अपलोड की ये पता करना मुश्किल है। और उस पर भी अगर
किसी ने भारत के बाहर से जा कर कुछ किया तो यहां के कानून वहां लागू नहीं हो सकते।
लब्बोलुआब ये की इस इंटरनेट नाम के भुत पर सेंसर लगा पाना मुश्किल है। हालांकी एक
रास्ता है की हम चीन बन जाएं। पर उसमें भी एक मुश्किल है... अगर चीन बन गए तो
अमेरिका नाराज हो जाएगा साहब।
आज से कुछ साल पहले जब टीवी की दुनिया में क्रांति आई थी तो
ऐसा लगा था की अखबार वालों और आकाशवाणी पर खबर बांचने वालो के लिए एक नई चुनौती आ
गई है। दरअसल ये एक चुनौती थी भी...टीवी पर धरधरा कर आने वाले ब्रेकिंग न्यूज ने
खबर के मायने ही बदल दिए। खबर अब पीएम, सीएम, विभिन्न पार्टीयें के आँफिस में होने
वाले रोजाना बैठकों से बाहर निकलकर सङक पर आ गया था। आसपास की खबरें नजर आने लगी।
जो समाचार पहले बोरिंग और उबाउ लगते थे...उसमें गरम मसाले का तडका लग गया था। मतलब
ये की अब सब कुछ न्यूज है।
Comments
Post a Comment